मातृ दिवस विशेष
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कभी-कभी यादें ताजा हो उठती हैं मेरी मां की !
खो जाता हूं अपने बचपन की यादों में !
यह पाता हूं कि कभी गोदी , कभी पीठ पर सवार होता था !
रोने चिल्लाने पर मां कैसे मुझे चुप कराती थी !
कैसे मां मुझे बिस्कुट , मिठाई और लाई देकर चूमती थी मेरे गालों को !
कह कर मेरे राजा बाबू , मेरे करेजा !
जब कभी स्कूल की फीस देनी होती , बड़े बाबू से लेता !
कम पड़ने पर मां भी अपने बटुए से देती थी गिन–गिन कर !
कैसे लौट जब कहीं दूर से महीने दो महीने बाद घर आता था !
एक मां थी जिसका ध्यान शरीर पर जाता था !
बोलती थी दुबले हैं , मेहनत पड़ती है , शरीर का ध्यान दिया करो बेटा !
ऐसी बोल अब शायद कहीं से सुनाई नहीं पड़ती !
हमेशा मीठा–पानी , शरबत–दाने , रोटी लेकर हाज़िर रहती थी मेरी अम्मा !
अब क्या , अब तो सभी को चाहत है , सब की ज़रूरतें हैं , सभी कहते हैं कमाते हो पैसा ! ध्यान दो इस पर , ध्यान दो उस पर , ध्यान दिलाते हैं भाई मेरे खेत–खलिहान , गांव , समाज , नात रिश्तों की ! सारे रिश्तों की बुनावट में शामिल है मेरी कमाई ! दुख – दर्द की परवाह करने की फुर्सत शायद नहीं किसी को ! सोचता हूं कि आज भी अगर अम्मा होती , तो अम्मा की हर मंशा को पूरा करने की कोशिश करता ! अपने से अच्छा समझ कर मां को बाज़ार से चीजें ला कर देता ! अम्मा खुश होती मेरी , देखकर मेरा सुख , मेरी शोहरत , मेरी दौलत , आंखों में अगर कभी चमक देखी मैंने , जब कभी मैं अच्छे नंबरों से पास होता ! यह सुनकर अम्मा का चेहरा खिल उठता था ! अम्मा ने दिखाए जो रास्ते , आज उन्हीं रास्तों पर चलता हूं तो दुनिया की नज़र में स्थान मिलता है सम्मान का ! शायद अभी भी मां का आशीर्वाद मिल रहा है ऊपर से ! तभी तो हर मुश्किल हो जाती है आसान !
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तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश ! संपर्क सूत्र – 9450489518