ग़ज़लों की महफ़िल दिल्ली की 38वी कड़ी में विख्यात शायर आगरा के अशोक रावत ने गजलों के आधुनिक स्वरूप की चर्चा कर शानदार गजलों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया, जमकर हुईं तारीफ़ और हौसला अफजाई

 


साहित्य:: पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत) के तत्वावधान में संचालित विख्यात साहित्यिक संस्था "ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" द्वारा चलाए जा रहे, देश भर में लब्ध प्रतिष्ठित और लोकप्रिय आनलाइन लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का गरिमामय   समापन विख्यात शायर आगरा के अशोक रावत जी की शानदार प्रस्तुति के साथ संपन्न हुआ।

ज्ञातव्य है कि पिछले 7- 8 महीनों से कोरोना काल में निजी और सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आयी विसंगति से लगभग ठहर गयी सी ज़िंदगी को आभासी साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से बड़ा बल मिला है। विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर जबसे रोक लग गयी है, ज़िदंगी में ठहराव आने लगा तो हमारी अदम्य जीजिविषा ने फिर से हर परिस्थिति के अनुरूप अनुकूलन करने में हमें सक्षम बना दिया। हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है कि नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य-समारोहों का आयोजन कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायरों से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।

इसी क्रम में साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी लगातार आनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन करती रही है।

"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के अध्यक्ष डाॅ विश्वनाथ झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि "न्यास" की ओर से हम भारत के विभिन्न शहरों में साहित्यिक और साँस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इसी क्रम में "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से आयोजित "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" में शायरों के अलावा ग़ज़ल गायकों को भी सप्ताह में एक दिन आमंत्रित किया, ताकि पटल के शायरों की ग़ज़लों को स्वर बद्ध कर करके ग़ज़ल प्रेमियों तक पहुँचाया जा सके, साथ ही साथ नामचीन ग़ज़लकारों की ग़ज़लों को भी सुना सके। अतः 13 जुलाई 2020 से शुरु हुए, प्रख्यात संस्था "ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)", की लाइव@ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) कार्यक्रम श्रृंखला शानदार तरीके से विगत पांच महीने से न सिर्फ़ सुचारू रूप से चलती रही, बल्कि देश के चोटि के शायरों ने इसमें शिरक़त करके इसे साहित्यिक हलके का अत्यंत ही प्रतिष्ठित और लोकप्रिय कार्यक्रम बना दिया। आज इसी कार्यक्रम श्रृंखला के पांचवें और अंतिम चरण की 38 वीं और अंतिम प्रस्तुति के रूप में विश्वविख्यात शायर श्री अशोक रावत जी ने ग़ज़लों की बारीकियों की चर्चा करते हुए अपनी बेहद उम्दा ग़ज़लें पढीं।

इस पांचवे चरण के कार्यक्रम में लाइव @ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की 38 वीं प्रस्तुति के रूप में शनिवार ,13 दिसंबर, 2020, शाम 7 बजे से आगरा, उत्तर प्रदेश के प्रख्यात शायर अशोक रावत जी ने अपनी ख़ूबसूरत और धारदार ग़ज़लें सुनाकर आज की शाम को एक यादगार शाम बना दिया। ग़ज़ल की बारीकियों को ध्यान में रखते हुई कहीं गयी आज के दौर में शायर अशोक रावत जी की ग़ज़लों ने तो जादू ही कर दिया तथा सबको गजलो के नए अंदाज़ को लोगो के सामने रखते हुए लगभग देढ़ं घंटे तक सबको बाँधे रखा।

ठीक 7 बजे अशोक रावत जी पटल पर उपस्थित हो गए और तबसे लगभग डेढ़ घंटे तक वे एक से बढ़कर एक बेहतरीन ग़ज़लें सुनाते रहे।

आज की हिन्दुस्तानी ग़ज़लों की बारीकियों और अरूज़ का ध्यान रखते हुए शायर अशोक रावत जी द्वारा सुनायी गई कुछ ग़ज़लें ही उनकी ग़ज़ल पर पकड़ की गवाही दे देतीं हैं:आप भी फेसबुक लाइव पर उनके द्वारा सुनाई गई गजलों का पढ़ कर आनंद लीजिए

एक दिन मजबूरियाँअपनी गिना देगा मुझे,

जानता हूँ वो कहाँ जाकर दग़ा देगा मुझे।।

वो दिया हूँ मैं जिसे आँधी बुझाएगी ज़रूर,

पर यहाँ कोई न कोई फिर जला देगा मुझे।।

और

अँधेरे तो हमें सच बात भी कहने नहीं देते,

उजालों के तसव्वुर हैं कि चुप रहने नहीं देते।।

कोई पत्थर नहीं हैं हम कि रोना ही न आता हो,

मगर हम आँसुओं को आँख से बहने नहीं देते।।

उधर दुनिया कि कोई ख़्वाब सच होने नहीं देती,

इधर कुछ ख़्वाब हैं जो चैन से रहने नहीं देते।।

ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और फिर

भले ही उम्र भर कच्चे मकानों में रहे,

हमारे हौसले तो आसमानों में रहे।।

हमें तो आज तक तुमने कभी पूछा नहीं,

क़िले के पास हम भी शामियानों में रहे।।

उड़ानें भी हमारे सोच में ज़िंदा रहीं,

ये पिंजरे भी हमारी दास्तानों मे रहे।।

तथा

दुश्मनों से भी निभाना चाहते हैं,

दोस्त मेरे क्या पता क्या चाहते हैं।।

हम अगर बुझ भी गए तो फिर जलेंगे,

आंधियों को ये बताना चाहते हैं।।

सांस लेना सीख लें पहले धुएँ में,

जो हमें जीना सिखाना चाहते हैं।।

सुनकर फेसबुक पेज पर लाइक्स तालियां,फूलो के एमोजी जे साथ ही साथ श्रोताओ ने कमेंट बाक्स में हौसला अफजाई के पोस्ट भर दिए

डर मुझे भी लगा फ़ासला देखकर, 

पर में बढ़ता गया रास्ता देखकर।।

ख़ुद ब ख़ुद मेरे नज़दीक आती गई,

मेरी मंज़िल मेरा हौसला देखकर।।

मैं परिंदों की हिम्मत पे हैरान हूँ,

एक पिंजरे को उड़ता हुआ देखकर।।

किसको फ़ुर्सत है मेरी कहानी सुने, 

लौट जाते हैं सब आगरा देखकर।।

एवं 

कभी वो राह में बिखरे हुए पत्थर नहीं गिनते,

सफ़र का शौक है जिनको किलोमीटर नहीं गिनते।।

उन्हें भी दर्द देती हैं सफर की मुश्किलें लेकिन,

जो मंज़िल तक पहुँचते हैं कभी ठोकर नहीं गिनते।।

उन्हें जब चोट लगती है गिरा देते हैं अपने फल. 

दरख्त अपनी तरफ फैंके हुए पत्थर नहीं गिनते।।

यही तो ख़ासियत होती है बस ईमान वालों की,

कभी नीचे नहीं गिनते, कभी ऊपर नहीं गिनते।।

द्वारा उनकी मेयारी की झलक दिखाई पड़ने लगी

और फिर

अँधेरों की सभा में सर उठाना सीख जाते हैं,

दियों को बस जला दो, झिलमिलाना सीख जाते हैं।।

वो ये भी सीख जाते हैं, सफ़र कैसे किया जाए, 

क़दम जो राह पर आगे बढ़ाना सीख जाते हैं।।

किसी तालीम के मोहताज होते ही नहीं पौधे, 

वो खुद मिट्टी में अपनी जड़ जमाना सीख जाते है।।

से महफ़िल में जैसे आग लग गई,हरेक शख़्स उनकी गजलों की ख़ूबसूरती में जैसे खो गया

कहने का आशय कि कहने का आशय कि शायर अशोक रावत जी की ग़ज़लों की धार ही अलग है। शायर अशोक रावत जी को ग़ज़ल पढ़ते हुए सुनना, ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) में उपस्थित सभी श्रोताओं के लिये एक नया अनुभव था। उनकी ग़ज़लों को सुनकर तो श्रोतागण भावविभोर हो गये। उनकी वाह-वाह के साथ तारीफ़ की झड़ी लग गयी।उनकी धारदार ग़ज़लों से महफ़िल का वातावरण बेहद जीवंत हो गया और बार-बार पेज पर तालियों की बौछार होती रही तथा कैसे एक घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। मंत्रमुग्ध होकर हम सभी प्रख्यात मोहतरम अशोक रावत जी को सुनते रहे, पर दिल है कि भरा नहीं।

इस तरह कहा जा सकता है कि अपनी धारदार और बेहतरीन ग़ज़लें सुनाकर अशोक रावत जी ने सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया, यानी कि महफ़िल लूट ली।

शायर अशोक रावत जी के फ़ेसबुक लाइव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें 

https://m.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1575172966000295/

   लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही दर्शक-श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की 38वीं कड़ी के रूप में अशोक रावत जी जब तक अपना कलाम सुनाते रहे, रसिक दर्शक और श्रोतागण महफ़िल में जमे रहे।

"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत) द्वारा आयोजित "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर से डाॅ अमर पंकज जी के धन्यवाद ज्ञापन के इन शब्दों से हुआ, जो आज के कार्यक्रम और आज के मेहमान शायर जनाब अशोक रावत जी की मेयार को काफ़ी हद तक रेखांकित करते हैं।

डाॅ अमर पंकज ने कहा कि लाइव @ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के इस पाँचवें और अंतिम चरण की अंतिम प्रस्तुति के रूप में आज ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की इस लाइव श्रृंखला को सफलता के शिखर पर पहुँचाकर सार्थकता प्रदान कर दी आपने, आदरणीय जनाब अशोक रावत साहेब। आज इस पटल पर आकर आपने इस प्रोग्राम को ऐसी मेयार पर पहुँचा दिया आदरणीय कि बस इसके आयोजन का उद्देश्य पूरा हो गया ऐसा मैं सार्वजनिक रूप से कहना चाहता हूँ। बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद।

लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की 38 वीं प्रस्तुति के रूप में आज ग़ज़लों की दुनिया के मशहूर और महबूब उस्ताद शायर श्री अशोक रावत जी, जिनके चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं और जो समसामयिक हिन्दी ग़ज़ल के फ़ाॅर्म और कंटेंट के मानदंड बन चुके हैं, ने विस्तार से ग़ज़ल की बारीकियों पर चर्चा करते हुए अपनी बेहद सधी हुई आवाज़ में एक से बढ़कर एक ग़ज़लें सुनाकर आज की शाम को इस महफ़िल की ऐतिहासिक और यादगार शाम बना दिया। दिल से शुक्रिया आदरणीय अशोक रावत जी। आपने अपनी मेयारी ग़ज़लें सुनाकर और महत्वपूर्ण जानकारियाँ देकर हम सबों को इतनी देर तक बाँधे रखा कि हम आपकी चर्चा-परिचर्चा में में डूबते रहे। बहुत बहुत शुक्रिया। हम आपके आभारी हैं आज की इस विचारोत्तेजक और दिलकश शाम बनाने के लिये। उम्मीद है कि आपका स्नेह, संबल और संरक्षण हमारी इस महफ़िल को हमेशा मिलता रहेगा।

मैं आज के इस लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) में पधारे सभी दर्शक-श्रोता मित्रों का भी हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने निरंतर बने रहकर आज के इस कार्यक्रम को सफल बनाया।

मैं "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" की ओर से टीम ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के सभी मित्रों के प्रति भी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।

आदरणीय श्री पंकज त्यागी असीम जी, आदरणीया डाॅ दिव्या जैन जी, आदरणीया डाॅ यास्मीन मूमल जी, आदरणीया श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी, आदरणीय डाॅ पंकज कुमार सोनी जी और आदरणीय अनिल शर्मा 'चिंतित' जी, आप सबके प्रति हम आभारी हैं कि आपकी लगन और मिहनत से लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) में एक से बढ़कर एक नये-पुराने अज़ीम शाइर/शायरा से हम सब रूबरू हो रहे हैं। आपका यह कारवां इसी तरह आगे बढ़ता रहे साथियो, यही कामना है। आप सबों का दिल से शुक्रिया।

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कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायर अशोक रावत जी के साथ-साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट करते हुए सबों से अनुरोध किया कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।

डाॅ अमर पंकज ने टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के सभी साथियों, डाॅ दिव्या जैन जी , डाॅ यास्मीन मूमल जी, श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी और डाॅ पंकज कुमार सोनी जी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित की।