रिश्तों की डोर का मैं कैसे करूं बयान तुमसे !
यह रिश्ते हैं जिनसे महफ़िल में आज रौनक है !!
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अपने रिश्तों की डोर संभाले रखिए जनाब !
एक रिश्ता टूटने से कई रिश्तों में दरार आती है !!
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मैं आज तुमसे कुछ नहीं कहूंगा सिर्फ़ इसके !
रिश्तों की डोर हमेशा मजबूत बनाए रखना !!
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सफ़र में मुझे रिश्तों की डोर मिल गई थी !
नतीजा रहा कि मंज़िल पर पहुंच गया मैं !!
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यूं तो मुझे कोई शिकायत नहीं है तुम से अब तक !
मगर ख़्याल रहे रिश्तों की डोर मजबूत रहे सदा !!
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रिश्ते यूं सजाओ कि सब मिल कर गुलदस्ता लगे !
संवर जाती है बहुतों की क़िस्मत इस गुलदस्ते से !!
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तुम्हारी तक़दीर का किस्सा फुर्सत से पढ़ा मैंने !
काश तुम भी अपने रिश्तों की डोर सजाए होते !!
************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !