धुआं ही धुआं दिख रहा है शहर के कौन - कोने में !
तुम्हीं बताओ मैं कैसे कहूं सब अच्छा है शहर में तेरे !!
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जला है आशियाना तेरा तो धुआं भी निकला होगा !
काम अच्छा हो या बुरा मगर कोई कारण तो होता है !!
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तुम्हें कैसे बताऊं बहुत सर्द मौसम है बाहर धुआं ही धुआं है !
सफ़र तो भूल जाओ घर के अंदर भी जान बचाना मुश्किल है !!
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ज़िंदगी गुजार रहे हो तुम धुआं भरे प्रदूषण में !
भला मैं कैसे कहूं कि तुम्हारी उम्र बड़ी लंबी है !!
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हमने उनसे पूछा था कहिए ज़िंदगी कैसी है !
वे बोले ज़िंदगी में धुआं ही धुआं है हर तरफ !!
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लकड़ी में यदि आग लगाओगे तो धुआं तो दिखेगा ही !
तुम क्या सोचते हो बिना धुआं के लकड़ी जल जाएगी !!
***************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !