साहित्य:: वर्तमान कोरोना काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी विसंगति आ चुकी है, ऐसा लगता है कि ज़िंदगी ठहर सी गयी है! साहित्य का क्षेत्र भी इसके दुष्प्रभावों से अछूता नहीं बचा है। विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर रोक लग गयी है। लेकिन कहते हैं न कि मनुष्य की अदम्य जीजिविषा उसे हर परिस्थिति का अनुकूलन करने में सक्षम बना देती है, सो हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली है। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है कि नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य-समारोहों का आयोजन कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायरों से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।
इसी क्रम में साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी 13 जुलाई 2020 से लगातार आनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है।
"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के अध्यक्ष डाॅ विश्वनाथ झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि "न्यास" की ओर से हम भारत के विभिन्न शहरों में साहित्यिक और साँस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं, परंतु करोना-काल अब ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन संभव नहीं है। अतः फिलहाल हम आनलाइन कार्यक्रमों की मार्फ़त ही अपनी सामाजिक-साँस्कृतिक जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं और इसी क्रम में "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से आयोजित "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" में शायरों के अलावा ग़ज़ल गायकों को भी सप्ताह में एक दिन आमंत्रित किया जा रहा है, ताकि पटल से जुड़े हुए कुछ नामचीन शायरों शायरों की ग़ज़लों को स्वर बद्ध कर करके ग़ज़ल प्रेमियों तक पहुँचाया जा सके, साथ ही साथ नामचीन ग़ज़लकारों की ग़ज़लों को भी सुना सके।
फ़िलहाल ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)", की लाइव कार्यक्रम श्रृंखला का तीसरा चरण चल रहा है। इस तीसरे चरण के कार्यक्रम में लाइव @ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की 28 वीं प्रस्तुति के रूप में आज, रविवार, 4 अक्टूबर 2020, शाम 4 बजे से लुधियाना के चर्चित शायर आदरणीय हरदीप सिंह बिरदी जी ने अपनी ख़ूबसूरत और धारदार ग़ज़लें सुनाकर आज की शाम को एक यादगार शाम बना दिया। ग़ज़ल की बारीकियों को ध्यान में रखते हुई कहीं गयी गजलों से 'बिरदी' जी ने तो जादू ही कर दिया और सबको लगभग घंटे भर बाँधे रखा रखा।
ठीक 4 बजे आदरणीय हरदीप सिंह जी पटल पर उपस्थित हो गए और तबसे लेकर एक घंटे तक वे अपनी बेहतरीन ग़ज़लें सुनाते रहे।
जब उन्होंने अपनी ग़ज़ल:
हर घड़ी ही मुस्कुराना चाहता हूँ।
दुश्मनों का दिल जलाना चाहता हूँ।
शायरी भी इक समंदर की तरह है
मैं इसी में डूब जाना चाहता हूँ।
और-----
सबसे बोला जा रहा है चुप रहो।
वरना मिलनी तय सज़ा है चुप रहो।
बोलने का हक तो उसने दे दिया
शर्त ये भी रख गया है चुप रहो।
सुनायी तो महफ़िल में लोग झूम उठे। फिर हरदीप जी जी की इस ग़ज़ल:
सीखे नहीं सबक भी किसी दास्ताँ से हम
आगे कभी न बढ़ सके अपने निशाँ से हम।
तू एक बार हमको लगाता तो इक सदा
आ जाते लौट कर भी किसी आसमाँ से हम।
तथा
ए मुहब्बत तेरे हम वफ़ादार हैं।
साथ ही में तेरे हम कर्ज़दार हैं।
हम को मालूम है होती क्या है मदद
इस लिए हम सभी के मददग़ार हैं।
ने तो लोगो को सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि पंजाब से संबंधित हरदीप जी कैसे हिंदी-उर्दू की ग़ज़लों में पूर्णतया पारंगत है।फिर इस ग़ज़ल ने तो
अभी यहीं हूँ गया नहीं हूँ।
खामोश हूँ बस डरा नहीं हूँ।
सदा रहेगा सरूर मेरा
मैं पल दो पल का नशा नहीं हूँ।
और
उन्हें दिल लगाने की आदत बुरी है।
लगाके भुलाने की आदत बुरी है।
चलो ज़ख्म देना है आदत तुम्हारी
मग़र फिर गिनाने की आदत बुरी है।
उनकी सोच की गहराई को दिल में उतारने पर मजबूर कर दिया।
अब हरदीप जी जी की इस ग़ज़ल ने:
सुनता हूँ मैं रहता है भगवान जमाने में
दिखता है मग़र मुझको शैतान ज़माने में।
जीना है अगर मुश्किल मरना भी बड़ा मुश्किल
कोई दे नहीं पाता है जान ज़माने में।
एवं
फरतों की क्यों खड़ी दीवार तेरे शहर में।
ढूँढता मैं फिर रहा हूँ प्यार तेरे शहर में।
गाँव जैसी बात होती ही नहीं है आपसी
हो गया हूँ मैं तो बस लाचार तेरे शहर में।
ऐसा प्रभाव छोड़ा मानो सभी कोई ग़ज़लकार की ही भावनाओ में जैसे खो गए।
आगे हरदीप साहब की इस खूबसूरत ग़ज़ल:
हाथ में जो ग़ुलाब रखता है ।
थोड़ी नीयत ख़राब रखता है।।
यूँ तो कहता है डर नहीं मुझको
पास फिर क्यों नकाब रखता है।
तथा
किसी की धड़कनों का सिलसिला हूँ।
देख करके इक हसीना मैं थमा हूँ।
लोग मुझसे कुछ दुआएँ माँगते हैं
लग रहा है यूँ मुझे अब मैं ख़ुदा हूँ।
की भी काफ़ी सराहना हुई।
सच कहें तो आदरणीय श्री आदरणीय हरदीप सिंह जी द्वारा पढ़ी गयी धारदार ग़ज़लों से महफ़िल का वातावरण बेहद जीवंत हो गया और बार-बार पेज पर तालियों की बौछार होती रही तथा कैसे एक घंटे का समय बीत गया पता ही नहीं चला। मंत्रमुग्ध होकर हम सभी उन्हें जी भर के सुनते रहे, पर दिल है कि भरा नहीं।
इस तरह कहा जा सकता है कि अपनी धारदार शैली में अपनी बेहतरीन ग़ज़लें सुनाकर हरदीप जी ने सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया, यानी कि महफ़िल लूट ली।
हमारे संवाददाता ने उनकी साहित्यिक यात्रा पर सवाल किया तो उन्होंने बताया कि हिन्दी-पंजाबी के अखबारों-रसालों में समय समय पर छपता रहता हूँ। AIR रेडियो, दुआबा रेडियो, कोहिनूर रेडियो, स्वर्ण गंगा रेडियो, सच दी गूँज रेडियो आदि पर प्रोग्राम पेश कर चुका हूँ। पँजाब के अनेक मंचो पर समय समय हाज़री लगवाता रहता हूँ।
आदरणीय हरदीप सिंह बिरदी जी के फ़ेसबुक लाइव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें
https://www.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1515673125283613/
लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही दर्शक-श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की 28 वीं कड़ी के रूप में आदरणीय श्री हरदीप सिंह जी जब तक अपना कलाम सुनाते रहे, रसिक दर्शक और श्रोतागण महफ़िल में जमे रहे।
"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत) द्वारा आयोजित "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर से डाॅ अमर पंकज जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायर आदरणीय श्री हरदीप सिंह विरदी के साथ-साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट करते हुए सबों से अनुरोध किया कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।
डाॅ अमर पंकज ने टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के सभी साथियों; डाॅ दिव्या जैन जी , डाॅ यास्मीन मूमल जी, श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी और डाॅ पंकज कुमार सोनी जी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित की।