बहुत नाज़ है है तुमको अपनी शानदार ज़िंदगी पर !
शुक्र है ख़ुदा का जो नाज़ुक वक्त मैं मुस्कुरा रहे हो तुम !!
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ज़िंदगी की हसीन राहों में न जाने कितने मिलते हैं !
सवाल यह है कि दिल में अब तक मुकाम किसका है !!
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अमूमन लोगों को ज़िंदगी से शिकायत रहती है !
ज़िंदगी का हुलिया बिगाड़ने में हाथ किसका है !!
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आदमी की ज़िंदगी तो कुदरत का उपहार है !
आदमी होकर भी हम कुदरत से मज़ाक करते हैं !!
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आज का बच्चा भी अपने को मां-बाप से सयाना समझता है !
अहम् सवाल यह है ज़िंदगी जीना अब उसे सिखाए कौन !!
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आदमी की फ़िजूल शौक का अंजाम यह निकला !
बग़ावत कर रही है कुदरत आज आदमी की ज़िंदगी से !!
************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !