मित्रता दिवस पर बधाई दें तो आख़िर किस को !
यहाँ तो मित्र भी मौका पाकर शत्रु बन जाते हैं !!
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नाज़ है दुनिया को कृष्ण और सुदामा की मित्रता पर !
फिर क्यों अपनी मित्रता में हम प्रगाढ़ हो पाते नहीं !!
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तुमसे मित्रता करके भी हमने देख लिया है !
रही शत्रुता की इसका तो सवाल ही नहीं !!
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मैं जानता हूं ज़माना रंग बदलने में गिरगिट का बाप है मगर !
किसी के मित्र बनकर दुनिया को वफ़ादारी सिखा क्यों नहीं देते !!
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मित्र धर्म का निर्वहन करके देखो तो कितना सुकून मिलता है !
केवल मित्रों की संख्या बढ़ा लेने से भला नहीं होगा तुम्हारा !!
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आज तो हैसियत देखकर लोग मित्रता का आमंत्रण करते हैं !
वह ज़माना और था जब लोग दिल की सुना करते थे !!
************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !