न जाने किसकी नज़र लगी है आज गुलशन को -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु


माना कि फूलों की ताजगी बहुत पसंद है तुमको !


मगर कली को फूल बनने में कुछ वक्त लगता है !! 


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मसल देते हैं कली को यहां पर फूल बनने से पहले ! 


फुल बनकर महकना हर कली की किस्मत में नहीं शायद !! 


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फूल बनने की खुशी में कलियां मुस्कुरा रही हैं ! 


शर्म नहीं है तुमको कली का अस्तित्व मिटाने में !! 


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कली है तो खिलकर रहेगी कुछ हौसला तो रखो ! 


हार बनकर गले में पहुंचना मुक़द्दर है फूल का !! 


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न जाने किसकी नज़र लगी है आज गुलशन को ! 


हर कली छटपटा रही है फूल बनने को आख़िर !! 


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भटक गए रास्ता भूलकर मां बाप की नसीहत सारी !


कलियों की मुस्कान छीन अच्छा नहीं किया तुमने !! 


************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !


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