जज द्वारा मोदी की तारीफ मामले में सुप्रीमकोर्ट के वकीलों में छड़ी छिड़ी जंग, बार एसोसिएशन अध्यक्ष दुष्यंत दवे को हटाने की मांग


नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के एक जज द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करने पर सुप्रीम कोर्ट के वकीलों में घमासान मच गया है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव अशोक अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पद से सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे को हटाने के लिए 11 मई को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की आम सभा की बैठक बुलाई है, यह आम सभा की बैठक कोरोना लॉकडाउन के दौरान वेब सेशन के जरिए होगी.


SCBA के प्रेसिडेंट दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा प्रधानमंत्री की तारीफ का संज्ञान लिया और जस्टिस अरुण मिश्रा के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की गई प्रशंसा को अनुचित ठहराया. 26 फरवरी को SCBA ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें जस्टिस अरुण मिश्रा की आलोचना करते हुए यह भी कहा गया था कि जस्टिस मिश्रा का यह बयान स्वतंत्र न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकील, SCBA के उस प्रस्ताव के खिलाफ भड़क गए हैं और दुष्यंत दवे को उनके पद से हटाने की मांग कर रहे हैं. उसी कड़ी में ये बैठक बुलाई गई है. 


हालांकि दुष्यंत दवे ने SCBA सेक्रेटरी के द्वारा बुलाई गई इस मीटिंग को गैरकानूनी करार दिया है. दवे ने कहा है कि SCBA की एक्‍जीक्‍यूटिव कमेटी ने ऐसी कोई मीटिंग नहीं बुलाई है. बता दें कि वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे मोदी सरकार के मुखर विरोधी रहे हैं. दवे, कोर्ट के भीतर और बाहर दोनों जगह मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं.
दरअसल, 25 फरवरी 2020 को SCBA की कार्यकारी समिति द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा की गई सार्वजनिक टिप्पणी की निंदा की गई थी. जस्टिस मिश्रा ने 22 फरवरी को इंटरनेशनल जजेज कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन समारोह में दिए गए अपने वोट ऑफ थैंक्स में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की थी और कहा था, 'पीएम मोदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. वैश्विक स्तर पर सोचते हैं और स्थानीय स्तर पर कार्य करते हैं." उस प्रस्‍ताव में कहा गया था कि SCBA का मानना ​​है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारत के संविधान की मूल संरचना है और इस स्वतंत्रता को संरक्षित किया जाना चाहिए. SCBA का मानना ​​है कि इस तरह का कोई भी बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर दुष्प्रभाव डालता है और इसलिए माननीय न्यायाधीशों से निवेदन है कि भविष्य में वे ऐसे बयान न दें और न ही कार्यपालिका से कोई निकटता दिखाएं." SCBA की कार्यकारी समिति ने कहा कि ऐसी निकटता और परिचय माननीय न्यायाधीशों की निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है और वादकारियों के मन में संदेह को पैदा कर सकती है."


इस मुद्दे पर जारी घमासान के बीच SCBA के सचिव अशोक अरोड़ा ने SCBA नियम 22 का उपयोग करते हुए 11 मई को बैठक बुलाई है जिसमें मुद्दा है-
-SCBA कार्यालय का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं करना.
-दुष्यंत दवे को SCBA अध्यक्ष पद से हटाना. 
-बार के हितों के खिलाफ काम करने के कारण दुष्यंत दवे को SCBA की प्राथमिक सदस्यता से हटाना.
दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने बार के सभी वकीलों को पत्र लिखकर कहा है कि मैं आप सभी का ध्यान माननीय सचिव अशोक अरोड़ा के प्रयासों की ओर लाने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं, जो आपको उनके मंसूबे के बारे में बताएगा. पूरी कवायद अवैध और अनुचित है. EC ने ऐसी किसी भी बैठक को बुलाने का फैसला नहीं किया है. इसलिए पूरी कवायद दुर्भाग्यपूर्ण और गलत है. 


उन्होंने आगे लिखा है, इसका कोई उद्देश्य नहीं होगा और न ही यह कोई और लक्ष्य हासिल कर सकती है, सिवाय इस बात के कि SCBA की प्रतिष्ठा को धूमिल ‌किया जाए. मैं विधिपूर्वक निर्वाचित अध्यक्ष हूं और कार्यकाल पूरा होने तक आपकी सेवा करता रहूंगा. यह प्रयास सभी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है और इसका कोई आधार नहीं है. मुझे आपने चुना है और इसकी वजह से मैं अपनी क्षमताओं के अनुसार आपकी सेवा कर रहा हूं. केवल आपके पास कार्रवाई की शक्ति और अधिकार है, न कि व्यक्तिगत एजेंडे को चला रहे किसी कोई व्यक्ति के पास. इस महान संस्थान की गरिमा और सम्मान, दांव पर है. इसलिए आपको सूचित कर रहा हूं कि मैं अपना कार्यकाल पूरा करना जारी रखूंगा और मुझे कोई व्यक्ति रोक नहीं पाएगा.


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