बस्ती -सरकार जहाँ प्राइमरी और जूनियर स्कूल की शिक्षा सुधारने के लिए तमाम प्रयास कर रही है, लेकिन बावजूद इसके बस्ती जनपद में इसकी बानगी कुछ अलग ही देखने को मिल रही है। आज हम आपको एक ऐसी ही रिपोर्ट के बारे में बताने जा रहे हैं, जो शिक्षा विभाग की पोल खोल देगी। जी हां…ऐसा सब कुछ तब हो पाता है, जब उसी विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत इस साजिश को अंजाम देने में शामिल होती है। बस्ती के कुदरहा ब्लॉक में अगर आप एक अध्यापक है तो समझिए की आपकी किस्मत चमक उठी है। आपको घर बैठे ही सैलरी मिलेगी और ये ऑफर इस एरिया के खंड शिक्षा अधिकारी की मेहरबानी से संभव है। जब हमने यहां के ऐसे कुछ स्कूलों की जमीनी हकीकत की पड़ताल की तो यहां पर आलाधिकारी समेत गुरूजन 'सर्व शिक्षा अभियान' की ऐसी धज्जियां उड़ाते हुए दिखें, जिसे देख आप हैरान हो जाएंगे। आपको हमारी यह पड़ताल बिल्कुल सोचने पर मजबूर कर देगी। पेश है हमारी ये खास रिपोर्ट….ये भी पढ़े :बस्ती: एसओ गौर, रक्षक बना भक्षक, थानेदारी की रौब से कटवाई जा रही है सागौन की लकड़ियां और आलाधिकारी मौन है
सबसे पहले हम आपको चकिया प्राइमरी स्कूल के बारे बताते हैं। यहां पर सरकार २ लाख रुपए सैलरी के रूप में अध्यापकों पर खर्च कर रही है, लेकिन रजिस्टर्ड बच्चों की संख्या मात्र 18 है और उसमें भी आते सिर्फ 8 ही है। मौके पर टीचर जय प्रकाश मौजूद मिले, लेकिन प्रिंसिपल अजय चौधरी मोटी सैलरी लेते तो जरूर है, लेकिन गरीब बच्चो को पढ़ाने में इन्हे कोई रुचि नहीं है। इस स्कूल पर मौजूद टीचर ने बताया कि यहां 3 अध्यापक हैं और एक विनोद हैं, जो डायट पर ट्रेनिंग के लिए गए हैं। वहीं, प्रिंसिपल साहब यहां कभी आते नहीं है। अब ऐसे में सरकार के 2 लाख रुपए का इस स्कूल पर दुरुपयोग किया जा रहा है, जबकि पढ़ने के लिए आने वाले गरीब बच्चों का भविष्य चौपट हो रहा है तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इतना पैसा, जो सैलरी के रूप में सरकार द्वारा इन अध्यापकों पर खर्च किया जाता है, लाज़मी है?
इसके बाद हम इसी ब्लॉक के डिहिकपुरा प्राइमरी स्कूल पर पहुंचे, जहां पढ़ने आने वाले गरीब बच्चो को पढ़ाने का जिन्हें सरकार ने जिम्मा दिया है, वो अपने निजी कामो में व्यस्त हैं। इस स्कूल की अध्यापिका आकांक्षा यादव कभी स्कूल ही नहीं आती। इतना ही नहीं दो रजिस्टर बनाकर स्कूल में आने वाले अधिकारी को भी धोखा दिया जा रहा है। इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पूरा दिन टीचर के अभाव में उछल कूद करते है, क्योंकि इन्हें पढ़ाने वाला कोई टीचर नहीं है तो इस पर जरा सोचिए इन बच्चों का भविष्य कैसा होगा, जहाँ इन बच्चों के अभिभावक इस उम्मीद के साथ स्कूल पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते है कि हमारे बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सामाज के लिए एक उदाहरण बनेंगे।
इसके बाद कूदरहा ब्लॉक के पिपरपाती प्राइमरी स्कूल पर हमारी टीम पहुंची और इस स्कूल का नजारा बेहद चौंकाने वाला था। यहां की प्रिंसिपल प्रियंका यादव कभी स्कूल ही नहीं आती और सरकार की नौकरी को घर बैठे कर रही है। महीने के अंत में आकर सिग्नेचर बना 70 हज़ार सैलरी लेकर चल देती है। इन्हें इन गरीब बच्चो के भविष्य से कोई लेना देना नहीं है। इस स्कूल में मौजूदा शिक्षामित्र किसी तरह से स्कूल चला रहे हैं।
इन सभी स्कूलों में पढ़ने आने वाले बच्चों को स्वेटर जूता और ड्रेस तक नहीं दिए गए हैं। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि सरकार का करोड़ों रुपए सिर्फ शिक्षा के बजट पर खर्च हो रहा है, जो जमीन पर मॉनिटरिंग करने के लिए जिम्मेदार क्या कर रहे हैं। बीएसए अरुण कुमार ने इस पूरे मामले को लेकर कहा कि हम इस मामले की जांच कराकर ऐसे लापरवाह शिक्षकों के ऊपर सख्त कार्यवाई करेंगे। अब इस पूरे प्रकरण में क्या ऐसे दागी शिक्षको के ऊपर शिक्षा विभाग के अधिकारी क्या कार्यवाई करते है, ताकि आगे चल कर ऐसे शिक्षकों को एक सीख मिल सके और स्कूल में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं को अच्छी शिक्षा।(राकेश तिवारी)