शहर दिल्ली की ज़्यादातर इमारतें इस्लामिक स्थापत्य की कहानी कहती हैं। मैं कल तीसरी बार क़ुतुब मीनार गया। दोस्तों के साथ वहीं क़ुत्बुद्दीन ऐबक और अलाउद्दीन ख़िलजी का किया-कराया निर्माण कुछ ज़्यादा ही ग़ौर से देख रहा था।
मुझे स्थापत्य में ख़ास दिलचस्पी नहीं है। इसके बावजूद मेरा ध्यान इस कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद के निर्माण को बाँचते शिला-पट्ट ने अटका दिया।
पहले भी मैंने यह पढ़ा था, चिंतन की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। इस बार न जाने क्यूँ, कैसे अनदेखा मगर देखा हुआ सा गूंजा। जैसे मस्जिद की दीवारों से निकलकर कोई पाक रूह मेरा पीछा कर रही थी जिसकी आँखों ही आँखों में इस मस्जिद को तामील किया गया हो! और जो रात होने के बाद, सैलानियों के चले जाने के बाद, अंधेरे में क़ब्रों के पास घूमती, बादशाहों के ख़्वाबों के जर्जर टुकड़े देखती कोई ख़ुदाई गीत गाती होगी।
इस मस्जिद का निर्माण 27 हिंदू और जैन मंदिरों को ध्वस्त कर किया गया था। अंदर छत को संभालने से अधिक इस्लामिक वास्तु को हिंदू आधार देते नक्काशीदार खम्भे ( चित्र देखें) अद्भुत संयोजन दिखलाते हैं। अंदर प्रांगण में तीसरी-चौथी शताब्दी के महान राजा चंद्रगुप्त द्वितीय की याद में बना भगवान विष्णु का प्रतीक लौह ध्वज है, जो हज़ार साल होने को आए, यहीं खड़ा है। इसे भी कहीं और से लाया गया था। कहते हैं इसे लानेवाले राजा अनंगपाल ने ही दिल्ली बसाई थी!
मैं हिंदू-मुस्लिम, मंदिर- मस्जिद मसले की सरहदों से पार आध्यात्म की ओर था। एक फ़िलोसपी बन रही थी वहाँ से गुज़रते हुए- ' बादशाह क़ुत्बुद्दीन का नाम और उसकी निशानी क़ुतुब कुछ नहीं, उसकी बनाई मस्जिद को आधार देते हिंदू और जैन मंदिरों के स्तम्भों के मुक़ाबिल।'
वैसे कुव्वतुल इस्लाम का मतलब होता है- इस्लाम की ताक़त।
अताह तापस चतुर्वेदी